अक्सर आप कर्म और भाग्य की तुलना करते होंगे।कई सारे सवाल आपके लिए उलझनें खड़ा कर देती होंगी।कर्म बड़ा है तो फिर भाग्य का क्या मतलब,अगर भाग्य बड़ा होता है तो फिर कर्म करने की क्या जरूरत।यह सिर्फ आप ही नही बल्कि पूरी दुनिया इसी विडंबना में उलझी है।चलिए हम आपको एक बहुत ही सरल और सार्थक कहानी के माध्यम से इसे समझाते है कि "कर्म बड़ा या भाग्य"। किसी गाँव में एक गरीब आदमी था।उसके साथ उसकी पत्नी रहती थी।जैसे तैसे उनका गुजर -बसर चलता था। एक बार भाग्य ने कहा देखो मैं कैसे इसे अमीर बना देता हूं।तब भाग्य ने उसे एक हीरे का हार दिया ,यह सोचकर कि वह गरीब आदमी इसे बेचकर अमीर हो जाएगा।खुशी के मारे वह गरीब आदमी पागल सा हो गया।घर जाते ही हीरे की हार को दीवार पर टाँग दिया और नहाने चला गया।वापस देखा तो हीरे की हार गायब था।उसके पड़ोसिन ने वह हार चुरा लिया। भाग्य ने दुबारा उस व्यक्तति को एक सोने की अंगुठी दिया।वह अंगूठी को पहनकर नहाने चला गया और वह अंगूठी तालाब में गिर गई।दुखी मन से घर...
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