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दंड या माफी

 




        "यदि आप वास्तव में अपना हित चाहते हैं, अपनी उन्नति और सुधार चाहते हैं, तो गलती करने पर 'दंड मांगें', माफी नहीं।"

        एक बच्चे ने स्कूल में एक गलती कर दी। किसी दूसरे बच्चे की पेंसिल चुरा ली। उसकी गलती पकड़ी गई। उसने अध्यापक से कहा, कि "मुझे माफ कर दीजिए, मैं भविष्य में दोबारा गलती नहीं करूंगा।" अध्यापक ने उसे माफ कर दिया। कोई दंड नहीं दिया। इस माफी देने का बच्चे के मन पर यह प्रभाव पड़ा, कि *"यह तो बहुत अच्छा हुआ, मैंने गलती भी की। सिर्फ दो शब्द बोल दिए, कि मुझे माफ कर दीजिए। और अध्यापक जी ने मुझे माफ कर दिया। दंड तो कुछ मिला नहीं। इसका मतलब गलती करने में कोई नुकसान नहीं है।"* 
        इस मनोवैज्ञानिक प्रभाव के आधार पर अब आप सोचिए, *"क्या वह बच्चा दोबारा वही गलती अथवा और कोई गलती करेगा या नहीं?"* अवश्य करेगा। मनोविज्ञान कहता है, *"जब उसे दंड तो मिला ही नहीं, तो वह बार बार गलती क्यों नहीं करेगा?"*
            एक दिन एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा, कि *"बच्चा हो, या बड़ा व्यक्ति हो, वह गलती करता ही क्यों है?"* मैंने उसे उत्तर दिया, *"क्योंकि उसे गलती करने में मजा आता है, अर्थात उसमें उसे सुख मिलता है। इसलिए वह गलती करता है। और जब गलती करने पर उसे किसी प्रकार का कोई दंड भी न मिले, तब तो वह जानबूझकर गलतियां करने लगता है। फिर बड़ी बड़ी गलतियां करता है। उसका  परिणाम यह होता है, कि उसका बिगाड़ होता जाता है। और बिगड़ते बिगड़ते वह इतना दुष्ट व्यक्ति बन जाता है, कि बड़ा होकर वह सबका जीना हराम कर देता है। ऐसे ही लोग फिर बड़े होकर असभ्य चोर डाकू लुटेरे हत्यारे अपहरणकर्ता और आतंकवादी तक बन जाते हैं।"*
          इन सब लोगों के बिगड़ने का कारण, मूल रूप से यही था, कि बचपन में गलतियां करने पर इन्हें उचित दंड नहीं दिया गया। वेदो में यह सिद्धांत बार बार बताया गया है, कि *"दंड के बिना कोई सुधरता नहीं है."*
         वेदों के आधार पर ऋषियों ने भी अपने ग्रंथों में यही लिखा है, कि *"जब बच्चे गलती करें, तो उन्हें आचार्य लोग दंडित करें. प्रजा में कोई नागरिक गलती करे, तो राजा उसे कठोर दंड देवे।"* यह विधान इसीलिए किया है, क्योंकि यह  मनोविज्ञान है, कि *"व्यक्ति दंड के बिना कभी सुधर ही नहीं सकता।"*
          *"इसलिए चाहे बच्चा हो, चाहे बड़ा व्यक्ति हो, जो भी गलती करे, और गलती करके माफी मांगे, उसे माफ़ नहीं करना चाहिए। उसको उस गलती का दंड अवश्य ही देना चाहिए। तभी वह सुधरेगा, अन्यथा नहीं।"* हां, दंड के स्वरूप अलग-अलग हो सकते हैं। जैसे कि, *"बच्चे की  पहली गलती पर उसे प्रेम से समझाना। दूसरी गलती पर डांट लगाना। तीसरी गलती पर थप्पड़ लगाना। चौथी गलती पर भोजन बंद कर देना। कभी झाडू पोचा लगवाना। कभी 15 दिन के लिए उसकी मिठाई बंद कर देना। कभी एक महीने के लिए उसको घूमने फिरने पर प्रतिबंध लगा देना इत्यादि।" "जो भी दंड देना हो, अपराध के अनुसार, बहुत सोच-समझ कर देना चाहिए। पूरी परीक्षा करके वास्तविक अपराधी को ही दंड देना चाहिए, निर्दोष को नहीं।"*
           एक और बात -- *"दंड व्यवस्था कठोर होनी चाहिए, और दंड भी सबके सामने दिया जाना चाहिए।"* यदि दंड व्यवस्था कठोर हो, तो उस कठोर दंड के भय से व्यक्ति स्वयं तो सुधरेगा ही, और उसको दंड भोगता हुआ देखकर जानकर सुनकर देश में और भी करोड़ों व्यक्ति सुधर जाएंगे। यदि फांसी का दंड सार्वजनिक रूप से दिया जाए, और उसे टेलीविजन पर दिखाया जाए, अखबारों में उसका फोटो भी छापा जाए, तो इस बात की पक्की गारंटी है, कि देश में अन्य भी करोड़ों व्यक्ति सुधर जाएंगे, तथा आगे अपराध नहीं करेंगे। उदाहरण, यूरोप तथा अरब देशों में देख सकते हैं।"*
         अतः जब भी कोई व्यक्ति गलती कर ले, तो उसे अपने बड़े लोगों से यह कहना चाहिए कि *"मुझे माफ मत कीजिए, बल्कि मुझे दंड दीजिए, ताकि मेरा सुधार हो जाए, जिससे मैं भविष्य में और बड़ी-बड़ी गलतियां न करूं। मेरा भविष्य सुरक्षित एवं सुखद बने।"*

* लेखक के स्वतंत्र विचार। हम इसे किसी के उपर हावी होने या फिर कठोर दंड देने का समर्थन नही करते।  क्योंकि  गलती मनुष्य करता है और करता रहेगा उसे प्यार से भी समझाया या सुधारा जा सकता है।

Source -social Media


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