Skip to main content

मौत या शहादत










आज के इस काल्पनिक कहानी को पढ़ने के बाद अगर आपको कुछ कहना हो तो कमेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर दीजियेगा.आपके बहुमूल्य सुझावों का हम पूरे सम्मान के साथ स्वागत करते है.



घर में खुशी का माहौल था. सभी बहुत खुश थे.इस खुशी का कारण भी अपने आप में बड़ा था. आखिरकार महेश के घर में चार बेटियों के बाद आज एक बेटे का जन्म जो हुआ था.परिवार मध्यमवर्गीय था.इसलिए चार बेटियों के लालन पालन की चिंता को भूलते हुए महेश पूरे हर्षों उल्लाश के साथ इस खुशी को अपने परिवार के  साथ साथ गांव वालों के साथ जश्न मना रहा था. वैसे भी मध्यमवर्गीय परिवार खुशियां बाटने में कमी नही करता.भले ही उसके हिस्से में दुख ही क्यों न लिखा हो. मानवों की बटवारे में मध्यमवर्गीय परिवार को ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है.
महेश का पूरा परिवार कृषि पर आधारित था.इसलिए इनके जीवन में उत्तर चढ़ाव लाजमी था.चार बेटियों के बाद जन्म लेने के कारण लड़के का नाम दीपक रहा.मानो यह लड़का इस परिवार के लिये  कुलदीपक के समान हो,खैर ये उनकी अपनी श्रद्धा ,विश्वाश था.
समय बीतता गया, महेश ने एक एक करके चारों बेटियों की शादी कर देता है. लड़के को अपनी इस मध्यमवर्गीय  स्थिति से आगे निकलना था . इसलिए वह पढ़ाई पर ज्यादा धयान देता था.वह पुलिस बनना चाहता था.इसके लिए वह जी तोड़ मेहनत करता था.उसका शरीर भी हट्टा कट्ठा था.
कहते है न   LABOUR NEVER INVAIN 
दीपक के साथ भी ऐसा ही हुआ. वह पुलिस में कांस्टेबल के पद पाने में सफल रहा.एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिये एक कांस्टेबल की नॉकरी भी बड़ी मानी जाती है.
लड़के के मेहनत ईमानदारी लग्न और परिश्रम ने उसे सफलता दिला ही दी.पर यह सफलता उसकी जीवन की सबसे बड़ी असफलता थी; काश की वह पुलिस में भर्ती ही नही हुआ होता.

                                                                                                
                                      दीपक की मेहनत ईमानदारी.सच्ची निष्ठा के सभी वरीय अधिकारी कायल हो गए थे. दीपक की दिनों दिन एक अच्छी पहचान बनती जा रही थी.किसी vip को सिक्योरिटी देनी हो या किसी अधिकारी का अंगरक्षक बनना हो; दीपक को ऐसे कर्तव्य में अक्सर चुना जाता था.दीपक की इसी अच्छाई ने उसके उसके जीवन की दीपक बुझा दी.किसे पता जो काम आज नाम और पहचान दिला रहा है वही एक दिन नाम मिटा देगा.
एक दिन दीपक की तैनाती एक बहुत बड़े मशहूर सेठ के अंगरक्षक के तौर पर हो गयी.सेठ के पास अरबो खरबो की सम्पति थी.उसे अंडरवर्ल्ड से धमकी मिलने लगा था इसलिए सेठ ने सरकार से अंगरक्षक की मांग की थी. हालांकि सेठ का रुतबा काफी बड़ा था पर अंडरवर्ल्ड के गुंडों जितना नही.खैर सरकार ने अंगरक्षक के तौर पर दीपक की तैनाती  सेठ के साथ कर दी. दीपक उस सेठ का अंगरक्षक बन गया.
      सेठ का बड़े बड़े लोगों के साथ उठना बैठना रहता था.इस सिलसिले में अक्सर देर रात तक वह पार्टियों से आया करता था.बड़े बड़े लोगो की पार्टी हो और शराब और शबाब न हो ये हो ही नही सकता.सेठ भी ऐसे पल का खुल कर आनंद उठाता था.ऐसे ही समय बीतता गया.दीपक का जीवन भी खुशहाली से कट रहा था.पर कहते है न की खुशी ज्यादा दिन तक नही टिकती,वही हुआ दीपक के साथ!

सेठ ने एक बार बहुत बड़ी पार्टी का आयोजन किया. इस पार्टी में देश के नामचीन लोगो के साथ बड़े बड़े नेता,अभिनेता,उद्योगपति,बिजनेसमैन आये हुए थे.दीपक को भी गर्व महसूस होता था जब वह इतने बड़े लोगो के बीच रहता था.दीपक भी अपनी छाप सबके दिलो में बना ही लेता था.पार्टी शुरू हुई .सब इस पल का आनंद ले रहे थे .कोई शराब पी कर झूम रहा था तो कोई लड़कियों के साथ झूम रहा था.दीपक साइड में हथियार लिए खड़ा था,क्योंकि वह सेठ का मुख्य सुरक्षकर्मी था इसलिए वह इस पल को चाहते हुए भी आनंद नही उठा पाता था.खैर यह मायने नही रखता क्योंकि दीपक उस वक्त ड्यूटी पर होता था.
                                                                                                                   पार्टी देर रात चलती रही.करीब 12:30 के बाद सेठ वहां जाने के लिये पार्टी से निकला.शराब के नशे में उससे ठीक से चला भी नही जा रहा था. दीपक और ड्राइवर उसे जैसे तैसे गाड़ी में लाकर बिठाये.ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की तभी सेठ ड्राइवर को गालियां बकने लगा.वह खुद गाड़ी चलाने के लिए उससे बोला .ड्राइवर ने सेठ को चलाने से मना कर दिया.सेठ को गुस्सा आ गया उसने ड्राइवर को एक दो थप्पड़ जड़ दिया.उसे गाड़ी से बाहर कर दिया.अब वह खुद गाड़ी स्टार्ट किया.दीपक को भी पता था की सेठ नशे गाड़ी नही चला पायेगा. दीपक भी सेठ को बार बार माना कर रहा था,पर सेठ नशे में चूर गाली दिए जा रहा था.सब लोग तमाशा की तरह देखे जा रहे थ.दीपक को भी बुरा लग रहा था.वह समझाता रहा पर नशे में सेठ को कुछ पल्ले नही पड़ रहा था. थक कर दीपक भी हार मान गया.सेठ को चाभी दे दिया .सेठ ने गाड़ी स्टार्ट की और चल दिए.इस वक्त गाड़ी में सेठ और दीपक , दो ही लोग थे. बेचारा ड्राइवर डर के मारे गाड़ी में नही बैठा था.
                                                     सेठ गाड़ी को ओवरस्पीड से भगा रहा था.सेठ के ड्राइविंग से दीपक को डर लग रहा था.पर सेठ को  इस बात का कोई असर नही पड़ रहा था.अचानक तेज रफ्तार कार सामने से आती नजर आयी.जैसे तैसे सेठ ने इस स्थिति को संभाला. पर किस्मत को भी कुछ और ही मंजूर था.कार को बचाने के चक्कर में सेठ ने सड़क के किनारे सो रहे लोगो के ऊपर से गाड़ी गुजार दी.गाड़ी अनियंत्रित हो गयी थी और जाकर दीवार में टकरा गई. दीपक और सेठ भी घायल हो गए थे.तेज रफ्तार गाड़ी के चढ़ जाने से कुछ लोग वही पर दम  तोड़ चुके थे.कुछ बुरी तरह से जख्मी  थे,चिल्ला रहे थे.दीपक गाड़ी से निकला और सेठ को भी बाहर निकाला.
                           ..थोड़ी देर बाद पुलिस आयी.सबको अस्पताल भिजवाया. प्राथमिकी दर्ज हुई पर किसी अज्ञात के ऊपर.मामला पूरे शहर में फैल गया .कुछ चश्मदीद गवाहों के आगे पुलिस को झुकना  पड़ा और फिर दूसरी प्राथमिकी में सेठ का नाम दर्ज हुआ.चूंकि सेठ की गाड़ी लोग पहचान गए थे.सेठ अपनी पूरी ताकत लगा दी इस प्राथमिकी को बदलने के लिये लेकिन कुछ   NGO ने इस हालात में उन गरीब  लोगो का साथ दिया जो इस घटना में मारे गए थे.इस घटना का चश्मदीद गवाह होने के चलते सेठ का फसना तय था,इसलिए सेठ ने तरकीब निकाली उसने मीडिया में अपना बयान दिया की वह गाड़ी नही चला रहा था, उसका गाड़ी तो उसका ड्राइवर चला रहा था. सेठ ने अपने ड्राइवर को करोड़ो का लालच देकर इसके लिए मना लिया था.ड्राइवर भी अपनी पूरी लाइफ में इतने पैसे नही कमा सकता था;इसलिए लालच में आकर उसने गुनाह काबुल कर लिया.
                                                               अब पुलिस ने दूसरी प्राथमिकी दर्ज की जिसमे मुख्य आरोपी ड्राइवर को बनाया गया.गवाह के तौर पर सेठ ने दीपक का  और अपना नाम दे दिया.दीपक को इस बात की बिल्कुल जानकारी नही हुई.अगले दिन सेठ ने दीपक को कोर्ट में गवाही देने के लिये कहा.यह सुनते ही दीपक सन्न रह गया. दीपक की ईमानदारी  व सत्यनिष्ठा झूठी गवाही देने से मना कर रही थी.इसलिए दीपक ने मना कर दिया.सेठ तिलमिला गया.उसने तत्काल पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया.झूठी गवाही देने के लिए सेठ और पुलिस डिपार्टमेंट ने पूरा जोर लगाया.पुलिस डिपार्टमेंट के प्रेशर में आकर दीपक झूठी गवाही के लिए राजी हो गया.
कोर्ट का सेशन शुरू हुआ .दीपक ने गवाही दी '' घटना वाले दिन सेठ की गाड़ी उनका ड्राइवर चला रहा था.''
हालांकि दीपक एक पुलिसवाला था इसलिए उसकी गवाही काफी हद तक मायने रखती थी.वैसे भी दीपक की छवि एक साफ सुथरे इमानदर व प्रतिष्टित व्यक्तित्व वाली थी.अतः कोर्ट ने ड्राइवर को मुख्य आरोपी मानते हुए सजा सुना दी. सेठ इस अपराध से बच गया.सेठ ने दीपके को अपने अंगरक्षक से हटा दिया ,किसी दूसरे पुलिसवाले को  नियुक्त करवा लिया.दीपक को यह एक अपमान सा लगा.खैर वह बिना किसी शिकायत के पुलिस लाइन लौट आया और अपनी सामान्य सी ड्यूटी करने लगा.
                                                                                      अब कुछ ऐसा हुआ जिसके बार में दीपक ने सोचा भी नही था.डिपार्टमेंट के कहने पर ही दीपक ने झूठी गवाही दी थी लेकीन डिपार्टमेंट ने  दीपक के ऊपर जांच कमिटी बिठा दी.दीपक एक मात्र चश्मदीद गवाह था जो यह जानता था की घटना वाले दिन गाड़ी सेठ ही चला रहा था.डिपार्टमेंट ने यह कहकर दीपक को नौकरी से बर्खास्त कर दिया की आपने झूठी गवाही क्यों दी? दीपक की आंखे फटी की फटी रह गयी.जिसके कहने पर उसने ये सब किया अब वही उससे ये प्रश्न पूछ  रहे है! खैर दीपक को नौकरी से निकाल दिया गया. दीपक को यह अंदर तक झकझोर कर रख दिया.वह इससे तनाव में आ गया था.वह सोच रहा था की आज अगर वह सच बोला होता तो इतना दुख नही होता जितना कि आज झूठ बोलने पर हुआ। यह बात उसे  अंदर से झकझोर रही थी कि मेरे एकमात्र झूठ बोलने से असली अपराधी बच गया.
                    उसके इस एकमात्र झूठ ने उसे इतना तनाव में ला दिया था की अब वह पागलों की भांति रहने लगा था.महेश बार बार दीपक को समझाता पर दीपक को कुछ भी असर नही कर रहा था.गांव में लोग उसका मजाक उड़ाने लगे थे.उसके बढ़ते मानसिक तनाव ने  कई तरह की बीमारियों का शिकार बना दिया था.हालात भी काफी बुरे हो गए थे.
नौकरी छूटने के लगभग तीन साल बाद दीपक के इस तनाव ने उसकी  जान ले ली.एक झूठ बोलकर वह अपने आप को कभी माफ नही कर पाया था. दीपक के मृत्यु के कुछ साल बाद एक बात की जानकारी हुई की दीपक को नौकरी से निकलवाने में सेठ ने पुलिस पर दबाव बनाया था .सेठ को डर था की दीपक कभी भी  इस सच्चाई को बाहर ला देगा और सच्चाई बाहर आने से सेठ का फसना तय था.इसलिए सेठ ने दीपक को ही नौकरी से निकलवा दिया था.
सेठ आज भी जिंदा है!

पाठको आपको क्या लगता है दीपक सही था या गलत?
पुलिस डिपार्टमेंट ने दीपक के साथ जो किया क्या वो सही था?
क्या दीपक की ईमानदारी ने उसकी जान ले ली ? 
दीपक की इस कुर्बानी को मौत कहा जाए या  शहादत?

    आप अपनी राय जरूर दीजियेगा.आपके सुझाव सादर आमंत्रित है.
                                                                               धन्यवाद...
                                                                
                                                                                  

Comments

Popular posts from this blog

New HOLLYWOOD,BOLLYWOOD,SOUTH MOVIE ,PUNJABI MOVIE& ADULT18+ MOVIE FREE

  NOTE:- इस एप्प की सबसे बड़ी खासियत यह है कि आप ऑनलाइन देख सकते है तथा पसंद आये तो ही डाऊनलोड करें।जैसा कि Telegram में यह सुविधा नही है।अतः यह एप्प टेलीग्राम से भी एक कदम आगे है। अक्सर लोग फ़िल्म देखने के लिए सबसे पहले YOUTUBE का  सहारा लेते है।पर YOUTUBE पर सभी फिल्में नही मिलती। अगर मिल भी गयी तो उसके लिए पैसे PAID करने पड़ते है। सबसे खास बात यह है कि YOUTUBE फ्लॉप मूवी को जल्द  अपलोड कर देता है जबकि सुपर डुपर हिट मूवी देखने के लिए  चार्ज लगा देता है।यूट्यूब से डाऊनलोड की हुई मूवी शेयर नही  की जा सकती ।शेयर करने के नाम पर डाउनलोड करने का एक  लिंक  देता है जो कि काफी निराशाजनक होता है।और तो और  आप youtube पर लैटेस्ट नई मूवी या वेब सीरीज बिल्कुल नही  देख सकते क्योंकि लैटेस्ट नई मूवी या वेब सीरीज के लिए पैसे देने  पड़ते है। लेकिन videopur आपके लिए लाया है एक विशेष App   क्या आप भी नई नई फिल्म या वेब सीरीज देखना चाहते है:- पर कैसे देखेंगे ?youtube पर तो  मिलेगा ही नही। 😂😄😀😁 आज हम आपको  एक बेहतरीन App के बारे में बता...
संसद भवन की खास बातें Source:-दृष्टि आईएएस drishti Ias आप आजकल कभी संसद भवन के आसपास से गुजरें तो समझ आ जाएगा कि देश की नई संसद की इमारत के निर्माण का कार्य शुरू हो चुका है। संसद भवन परिसर को बड़े-विशाल बोर्डों से घेर दिया गया है पर अंदर से बाहर आने वाली आवाजें बताती हैं कि नई संसद बनाई जा रही है। हालॉंकि पुराना संसद भवन बना रहेगा। उसके उपयोग को लेकर भी सरकार जल्दी फैसला लेगी। निश्चित रूप से भारतीय लोकतंत्र का सबसे अहम प्रतीक रहा है हरबर्ट बेकर द्वारा डिजाइन किया गया संसद भवन। बेकर ने अपने सीनियर और नई दिल्ली के चीफ टाउन प्लानर एडवर्ड लुटियंस के परामर्श से संसद भवन का डिजाइन तैयार किया था। इस निर्माण के वक्त दोनों में कई मुद्दों पर बहस होती रहती थी। बेकर इसके बड़े हॉल के ऊपर गुंबद बनवाना चाह रहे थे जबकि लुटियंस इसे गोलाकार रखने का पक्ष में थे। तब इसका नाम कौंसिल हाउस था। संसद भवन का निर्माण 1921-1927 के दौरान किया गया था। इसका उद्घाटन 18 जनवरी 1927 को हुआ था। संसद भवन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। इसकी तुलना विश्व के सर्वोत्तम संसद भवनों के साथ की जा सकती है। यह एक विशाल वृत्ताकार...