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रेलवे विकल्प स्कीम

ट्रेन का टिकट बुक करते समय विकल्प योजना क्या होता है? हिंदी और English में पूरी जानकारी।। टिकट बुक करते समय कई बार हमे विकल्प स्कीम का ऑप्शन दिया जाता है। इस स्कीम के बारे में बहुत कम लोगो को जानकारी होता है। यह यात्रियों के सुविधा के लिए ही दिया जाता है। अतः आप भी इसका लाभ उठाएं।। VIKALP Scheme IMPORTANT PASSENGER INFORMATION:- PLEASE NOTE • Opting for VIKALP does not mean that confirmed berth will be provided to passengers in alternate train. It is subject to train and berth availability. • Once confirmed in Alternate train, Cancellation charges will be as per your berth/train status in alternate train. • In this scheme, your boarding and terminating station might change to   nearby cluster stations. • • You can be transferred to any alternate train opted and departing between 30 minutes to 72 Hours from the scheduled departure of original train, in which you have booked. • Option of VIKALP scheme is available at later stage before charting also through booked ticket histo...
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पन्नाधाय- त्याग की अमर कहानी

  राष्ट्रधर्म पर , किया प्यारा पुत्र बलिदान। ममता से ऊपर था मातृभूमि का स्वाभिमान।। पन्ना धाय के बलिदान की कहानी चित्तौड़गढ़ के इतिहास में जहाँ पद्मिनी के जौहर की अमरगाथाएं, मीरा के भक्तिपूर्ण गीत गूंजते हैं वहीं पन्नाधाय जैसी मामूली स्त्री की स्वामीभक्ति की कहानी भी अपना अलग स्थान रखती है। बात तब की है‚ जब चित्तौड़गढ़ का किला आन्तरिक विरोध व षड्यंत्रों में जल रहा था। मेवाड़ का भावी राणा उदय सिंह किशोर हो रहा था। तभी उदयसिंह के पिता के चचेरे भाई बनवीर ने एक षड्यन्त्र रच कर उदयसिंह के पिता की हत्या महल में ही करवा दी तथा उदयसिंह को मारने का अवसर ढूंढने लगा। उदयसिंह की माता को संशय हुआ तथा उन्होंने उदय सिंह को अपनी खास दासी व उदय सिंह की धाय पन्ना को सौंप कर कहा कि, “पन्ना अब यह राजमहल व चित्तौड़ का किला इस लायक नहीं रहा कि मेरे पुत्र तथा मेवाड़ के भावी राणा की रक्षा कर सके‚ तू इसे अपने साथ ले जा‚ और किसी तरह कुम्भलगढ़ भिजवा दे।” पन्ना धाय राणा साँगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थीं। पन्ना धाय किसी राजपरिवार की सदस्य नहीं थीं। अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना  पन्ना ध...

मौत या शहादत

आज के इस काल्पनिक कहानी को पढ़ने के बाद अगर आपको कुछ कहना हो तो कमेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर दीजियेगा.आपके बहुमूल्य सुझावों का हम पूरे सम्मान के साथ स्वागत करते है. घर में खुशी का माहौल था. सभी बहुत खुश थे.इस खुशी का कारण भी अपने आप में बड़ा था. आखिरकार महेश के घर में चार बेटियों के बाद आज एक बेटे का जन्म जो हुआ था.परिवार मध्यमवर्गीय था.इसलिए चार बेटियों के लालन पालन की चिंता को भूलते हुए महेश पूरे हर्षों उल्लाश के साथ इस खुशी को अपने परिवार के  साथ साथ गांव वालों के साथ जश्न मना रहा था. वैसे भी मध्यमवर्गीय परिवार खुशियां बाटने में कमी नही करता.भले ही उसके हिस्से में दुख ही क्यों न लिखा हो. मानवों की बटवारे में मध्यमवर्गीय परिवार को ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है. महेश का पूरा परिवार कृषि पर आधारित था.इसलिए इनके जीवन में उत्तर चढ़ाव लाजमी था.चार बेटियों के बाद जन्म लेने के कारण लड़के का नाम दीपक रहा.मानो यह लड़का इस परिवार के लिये  कुलदीपक के समान हो,खैर ये उनकी अपनी श्रद्धा ,विश्वाश था. समय बीतता गया, महेश ने एक एक करके चारों बेटियों की शादी कर देता है. लड़के को अपनी इस मध्यमवर्गीय...

दंड या माफी

          "यदि आप वास्तव में अपना हित चाहते हैं, अपनी उन्नति और सुधार चाहते हैं, तो गलती करने पर 'दंड मांगें', माफी नहीं।"         एक बच्चे ने स्कूल में एक गलती कर दी। किसी दूसरे बच्चे की पेंसिल चुरा ली। उसकी गलती पकड़ी गई। उसने अध्यापक से कहा, कि " मुझे माफ कर दीजिए, मैं भविष्य में दोबारा गलती नहीं करूंगा।" अध्यापक ने उसे माफ कर दिया। कोई दंड नहीं दिया। इस माफी देने का बच्चे के मन पर यह प्रभाव पड़ा, कि *"यह तो बहुत अच्छा हुआ, मैंने गलती भी की। सिर्फ दो शब्द बोल दिए, कि मुझे माफ कर दीजिए। और अध्यापक जी ने मुझे माफ कर दिया। दंड तो कुछ मिला नहीं। इसका मतलब गलती करने में कोई नुकसान नहीं है।"*          इस मनोवैज्ञानिक प्रभाव के आधार पर अब आप सोचिए, *"क्या वह बच्चा दोबारा वही गलती अथवा और कोई गलती करेगा या नहीं?"* अवश्य करेगा। मनोविज्ञान कहता है, *"जब उसे दंड तो मिला ही नहीं, तो वह बार बार गलती क्यों नहीं करेगा?"*             एक दिन ए...

Army Running की तैयारी कैसे करें?

 मोटिवेशनल  क्या आप आर्मी जॉइन करना चाहते हैं   अगर सच में ज्वाइन  करना चाहते हैं तो अपने रनिंग के पुराने स्टाइल को बदल दीजिए  अब कुछ नया करते हैं जो आपको आर्मी भर्ती में एक्सीलेंट दिला  सके. आर्मी भर्ती के लिए रनिंग सबसे ज्यादा मायने रखता है.यह फर्स्ट स्टेज एग्जाम होता है जिसमें अगर आप रनिंग पास किए तो  ही इसके आगे के लिए आपको रखा जाएगा वरना ग्राउंड से ही  भगा दिया जाता है। आपमें से बहुत सारे लोग अब तक कई भर्तियां  देखें भी होंगे उन्हें अनुमान है कि कितनी भीड़ होती है और इस  भीड़ में रनिंग निकालना बहुत ही मुश्किल है पर इस मुश्किल  को हम बहुत ही आसान बनाने जा रहे हैं। जिंदगी की इस दौड़ में कठिन परिश्रम ही आपका एकमात्र सहारा हैं। Click Here सामान्यतः यह देखा जाता है कि हर किसी को आर्मी रनिंग की तैयारी में कुछ बेसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे :- दौड़ने का मन नही करता है समय से नींद नही खुलता दौड़ने के लिए कोई साथ मे नही रहता अच्छे ग्राउंड की कमी थोड़ी ही देर में सांस का फूलना दौड़ते समय सीने में दर्द होना कभी कभी पेट मे दर्द होना ...
संसद भवन की खास बातें Source:-दृष्टि आईएएस drishti Ias आप आजकल कभी संसद भवन के आसपास से गुजरें तो समझ आ जाएगा कि देश की नई संसद की इमारत के निर्माण का कार्य शुरू हो चुका है। संसद भवन परिसर को बड़े-विशाल बोर्डों से घेर दिया गया है पर अंदर से बाहर आने वाली आवाजें बताती हैं कि नई संसद बनाई जा रही है। हालॉंकि पुराना संसद भवन बना रहेगा। उसके उपयोग को लेकर भी सरकार जल्दी फैसला लेगी। निश्चित रूप से भारतीय लोकतंत्र का सबसे अहम प्रतीक रहा है हरबर्ट बेकर द्वारा डिजाइन किया गया संसद भवन। बेकर ने अपने सीनियर और नई दिल्ली के चीफ टाउन प्लानर एडवर्ड लुटियंस के परामर्श से संसद भवन का डिजाइन तैयार किया था। इस निर्माण के वक्त दोनों में कई मुद्दों पर बहस होती रहती थी। बेकर इसके बड़े हॉल के ऊपर गुंबद बनवाना चाह रहे थे जबकि लुटियंस इसे गोलाकार रखने का पक्ष में थे। तब इसका नाम कौंसिल हाउस था। संसद भवन का निर्माण 1921-1927 के दौरान किया गया था। इसका उद्घाटन 18 जनवरी 1927 को हुआ था। संसद भवन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। इसकी तुलना विश्व के सर्वोत्तम संसद भवनों के साथ की जा सकती है। यह एक विशाल वृत्ताकार...

Virus-Nature's Game or Human's scam ?

                         Videopur-A Hope Of Life                                     1999                               आखिर हर  2 से 5 साल के अंतराल पर ये वायरस कहाँ से आ जाते  है? कभी सोचा है इसके बारे में! विज्ञान इतना तरक्की कर चुका है फिर भी इन वायरस का अब तक कोई इलाज नही!तो फिर तरक्की किसकी मानी जाए? लाखों-करोड़ों रुपये का बिजनेस इन वायरस के नाम पर हर बार होता है और यह आगे भी चलता रहेगा। इसमें दी गयी सारी जानकारी गूगल से सआभार लिया गया है।इसकी गुणवत्ता की जांच आप कर सकते है। क्या यह प्रकृति का एक खेल है या फिर मनुष्यों द्वारा रचित कोई बहुत बड़ा घोटाला।आप खुद सोचिए आखिर हर 2 से 5 साल के अंदर एक न एक नया वायरस का खेल शुरू हो ही जाता है।    1999  West nile virus  वायरस की खोज की गई थी  युगांडा  1937 में, और पहली बार 1999...